Thursday 11 October 2007

Praana, Tej aur Oj

प्राण, तेज और ओज


हमारे शरीर की एक प्रकृती है और उस प्रकृति से जब हम हट जाते हैं उसे विकृति कहते हैं.

शरीर और मन की स्वाभाविक और संतुलित स्थिति को प्रकृति कह सकते हैं.

हमारी प्रकृति बदलती नही है. पर उस प्रकृती में विकृतियाँ आती हैं.

जैसे गलत भोजन करने से हमारे शरीर में विकृति आती है. पुराना खा लिया, जला हुआ खा लिया, सदा हुआ खा लिया. इन सबसे प्रकृति में फेर बदल आते हैं. भोजन के अलावा बहुत सी अलग अलग चीजों से हमारी प्रकृति में विकृतियाँ आती हैं.

अगर हम जान लें कि क्या आहार से शरीर और मन पर क्या प्रभाव पढता है तो प्रकृति में विकृति को कम किया जा सकता है. और धीरे धीरे हम अपनी स्वाभाविक प्रकृति की ओर बढ़ सकते हैं. यह ज्ञान आयुर्वेद का एक भाग है.

प्रकृति में आने से संतुलन आता है. और जब आपका मन, आपका शरीर और आप के आसपास का संसार आपकी प्रकृति के साथ हो, तो आपकी चेतना में एक लय और संतुलन बनने लगता है. यह संतुलन, यह लय में जीने से हमारा जीवन स्वस्थ हो जाता है.

प्रकृति नहीं बदलती है. इसमे विकृतियाँ आ जाती हैं. विकृति को हम तीन दोषों द्वारा जानते हैं- वात, पित्त और कफ.

वात, वायु से, पित्त अग्नी से, और mucous या lubrication से सम्बंधित है. वात, पित्त और कफ के असंतुलन का हमारे शरीर और मन पर असर होता है.

जब हमारे शरीर और मन में संतुलन बनता है तो हम सत्त्व गुण में होते हैं और जब उनमें असंतुलन होता है तब हम राजस या तमस में होते हैं.

सत्त्व, राजस और तमस गुण बदलते रहते हैं, और इनके प्रभाव से लोग अलग अलग भाव में दिखते हैं. कोई सात्त्विक है, कोई राजसिक है, कोई तामसिक है, ऐसा कहना गलत है.

विकृति के कारण कभी कभी प्रकृति दिखती ही नही. आपकी विकृति इतनी बढ़ जाती है कि प्रकृति की जगह विकृति ही दिखती है.

मन जब अपनी प्रकृति में आ जाता है तो आपके विचार शुद्ध होने लगते हैं. और चेतना शुद्ध रुप में प्रकट होती है.

तो यह समझते हुए जीवन व्यापन करना चाहिए.

जब वात संतुलन में आता है तो प्राणशक्ति बढ़ती है. जब पित्त संतुलित होता है तब तेज बढ़ता है. और जब कफ संतुलन में आता है तो ओज बढ़ता है.

प्राणशक्ति बढने से शरीर में स्फूर्ति आती है. तेज बढने से शरीर में एक चमक आती है, और ओज बढने से हमारे शरीर में बिमारी नही आती.

वात के साथ मन का संबंध है. जब वात संतुलित होने लगता है तो प्राणशक्ति बढ़ती है, और हमारा मन शांत होने लगता है.

पित्त के साथ हमारी पाचन शक्ति जुडी है. हमारा पित्त ठीक होने लगता है तो हमारा हाज़मा ठीक होने लगता है, और हमारी बुद्धी संतुलन में आती है. क्रोध कम होने लगता है.

कफ संतुलित होने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और ओज बढने से बीमारियाँ हम को चू भी नहीं सकतीं. हमारा शरीर लचकदार हो जाता है।

प्रान, तेज और ओज हम सब में है. इनकी मात्रा बढाने के लिए, सही आहार, सही प्राणायाम, और सही योग साधना ज़रूरी है…

जो साधना करते हैं उनमे जीवन्तता, vitality दिखती है, वह प्राण शक्ति के कारण है. उनके शरीर के आसपास आपको एक चमक सी दिखेगी, वह उनका तेज है. उनमें बिमारी नहीं आती, वह ओज के कारण है…