Tuesday 9 October 2007

Swarg Narak Kya Hai?

स्वर्ग नरक क्या है?



Q: स्वर्ग नरक क्या चीज़ है?

A: जहाँ कर्म बनता है वहाँ नरक है, और जहाँ कर्म घटता है वहाँ स्वर्ग है.

तुम्हे कर्म बनाना है या घटाना है- यह तुम्हारे हाथ में है…

अपने कर्म को निष्काम बनाओ. जिस कर्म के पीछे कोई वेग नहीं है- there is no impulse, no reactivity.

तुम चाहो तो कर्म है, तुम नहीं चाहो तो नहीं है…

जब हम पूजा पाठ मे बैठते है, तब बिना समझे ही कर्म बनाते है.

अच्छा कर्म ही हो, मगर कर्म बनता है- और वह हमें संसार में फंसा कर रखता है...

We have defined it as a good karma and bad karma, karma is just karma. Karma is action.

आपने जाने अनजाने में कुछ किया और उसका कुछ कर्म बन गया…

Any action creates reaction, this is the law of this world, when you do not see reaction you call it a miracle…

There are subtle forces which can be accessed and controlled without use of the body- these are powerful siddhis…

पानी पर चलना, आग पर चलना, हवा में उड़ना, जो कुछ आपको प्रत्यक्ष समझ नही आता, अचम्भा सा दिखता है- ऐसी चीजों को आप आध्यात्म मान लेते हो- और जो सिद्ध पुरुष इन सिद्धियों को दिखलाते हैं, उनकी भक्ती करते हो…

पर यह भी कर्म से बंधी हुई चीज़ें हैं. इनका कर्म भी बनता है…

Even these will generate karmic retribution, since action is still happening in the material world- hence there is bound to be a reaction…

These are in fact creating greater karma. The laws of the spirit are different- here subtle is more powerful, than the gross…

सूक्ष्म में स्थूल से बहुत अधिक शक्ति है…

आपका शरीर वही करता है जो आपका मन कहता है. मन वही करता है जो बुद्धि कहती है, बुद्धि वही करती है जो चित्त कहता है…

The subtler is controlling the gross. This is the law; every level of our existence is connected with a subtler level- that is more powerful.

But the subtler levels also are bound by the law of karma, they are also part of the dimension where cause and the effect are happening...

Then what is the action which does not give any karma?

जहाँ कर्म बढ़ता है वह नरक है और जहाँ कर्म घटता है वह स्वर्ग है.

उस हिसाब से तो आप अच्छा करोगे तो भी आप नरक में जाओगे!

क्योंकि आप कर्म बना रहे हो. जिस क्षण आपने किसी चीज़ को अच्छा माना उसी क्षण आपने किसी चीज़ को बुरा मान लिया…

It happens automatically. Good can only exist because of bad.

The moment you have defined ‘good’, that very moment you have defined ‘bad’ too.

The moment you have said ‘this’, the same moment, ‘not this’ has appeared.

The moment you have labelled yourself as ‘I’, that very moment you have defined what is ‘not I’.

And the moment you have said these three things, you have created karma for yourself...

Every action occurs because there is a doer, something to be acted upon, and the process.

So the moment you act- whether physically or with some siddhis, have created duality...

कोई अच्छा या बुरा कर्म नही है, कर्म तो कर्म है. चोर का हो या संत का, Xray machine तो Xray निकालेगी ना?

आप कर्म करते हो- ना कोई अच्छा कर्म होता है ना बुरा कर्म होता है, कर्म तो सिर्फ कर्म होता है. आपने उसे अच्छा या बुरा स्वरूप दे दिया है.

नरक और स्वर्ग कर्म में नही हैं- तो फिर किस मे हैं?

आपके उस कर्म के पीछे क्या भाव है- उसमें हैं.

भाव से स्वर्ग और नरक बनता है.

इस भाव को कैसे शुद्ध किया जाये?

इसी ज्ञान में तुम्हारी मुक्ति है.

मोक्ष कर्म करने या छोड़ने में नही है. जो है वही ठीक है, जहाँ हो, जिस जीवन को जी रहे हो, वंही मोक्ष है…

कैसे?

मन को शुद्ध बनालो, केवल स्फूर्ति हो. अष्टवक्र कहते है 'निर्वासना स्फूर्ती मात्र:'- मन में केवल स्फूर्ति होनी चाहिए - impetus and movement of the mind and body, without desires...

तब यह मन आपको स्वर्ग में ले आएगा. ऐसा पवित्र मन बनाओ.

You are doing things because of reasons. Every action you perform is because of some reason. The moment you do any action without any impetus you will be free…

चित्त निर्मल हो जाने दो फिर उसमें से नेकी प्रकट होती है.

नेक भव में जीना सीखो…

Hamara Asli Swaroop

हमारा असली स्वरूप




Q: हमारा असली स्वरूप क्या है?

A: वह तो हमें ही ढूंढ़ना है.

'मैं कौन हूँ?', इस चिन्तन में रहकर ढूंढ़ना है.

मेरी सजगता किस चीज़ पर है? क्या मैं केवल शारीर हूँ?

यह शरीर बार बार मरता है, बार बार जन्म लेता है. पर क्या यही हमारा जन्म- मृत्यु का खेल है?

क्षण प्रतिक्षण पुनर्जन्म होता है.

जब आप इस कमरे में आ गए तो शिष्य हो गए. कमरे के बाहर आप गाड़ी के driver बन जाओगे या passenger बन जाओगे. जब तक आप इस कमरे में हो तब तक आप सब शिष्य हो, उसमे ना कोई पुरुष है, ना कोई महिला है, ना कोई बड़ा है, ना कोई छोटा है.

वह सब चीजों के कोई मायने नहीं हैं.

तो यहाँ जन्म किसका हो गया? शिष्य का. बाहर निकलने के बाद तुम्हारे कोई और स्वरूप का जन्म हो जाएगा.

तुम्हारा रुप क्षण प्रतिक्षण बदलता है. रूप बदलते हैं, पर स्वरूप नहीं बदलता...

अस्ति, भाती, प्रीति, नाम, रुप. यह पांच लक्षण हैं जीव के…

अस्ति- होना

भाती- महसूस होना

प्रीति- प्रेम करना और पाना

नाम और रुप- दोनो इस संसार के हैं, वही बदलते रहते हैं.

नाम भी बदलता है, रुप भी बदलता है. अस्ति, भाती और प्रीति नही बदलते...

मैं हूँ, मैं जानता हूँ कि मैं हूँ, और मैं जानता हूँ कि मेरा स्वरूप प्रेम है. यह तीन नहीं बदलते - पर यह याद नहीं रहती क्योंकि हम नाम रूप में फँस जाते है.

नाम और रुप एक आवरण है, एक covering है- इसको जानते हुए अस्ति,भाती और प्रीति के साथ जुडे रहना सीखो. यही ज्ञान है...

और अज्ञान माने क्या? अस्ति, भाती और प्रीति को भूलते हुए नाम और रुप में फँस जाना.

स्वर्ग माने क्या? अस्ति,भाती और प्रीति में रहते हुए नाम और रूप के साथ खेलते रहना.

नरक माने क्या? अस्ति भाती और प्रीति को भूल के नाम और रुप में जीवन बिताना.

'मैं हूँ' - अस्ति.यह सत है

हमें पता है कि हम हैं- भाती- इसे चित कहते है.

और प्रीती- हम जान रहे हैं कि हमारा सच्चा स्वरूप प्रेम है- आनंद है...

अस्ति, भाती और प्रीति- सत, चित और आनंद- सच्चिदानंद...

हम अपने इस स्वरूप को भूल जाते हैं जब नाम रूप में फँस जाते हैं...

क्या मैं नही हूँ- इसे ढूँढो...

जो इसे जान रहा है, जो नहीं बदल रहा है- उस के साथ हो जाओ...

यही मोक्ष का द्वार है...