हमारा असली स्वरूप
Q: हमारा असली स्वरूप क्या है?
A: वह तो हमें ही ढूंढ़ना है.
'मैं कौन हूँ?', इस चिन्तन में रहकर ढूंढ़ना है.
मेरी सजगता किस चीज़ पर है? क्या मैं केवल शारीर हूँ?
यह शरीर बार बार मरता है, बार बार जन्म लेता है. पर क्या यही हमारा जन्म- मृत्यु का खेल है?
क्षण प्रतिक्षण पुनर्जन्म होता है.
जब आप इस कमरे में आ गए तो शिष्य हो गए. कमरे के बाहर आप गाड़ी के driver बन जाओगे या passenger बन जाओगे. जब तक आप इस कमरे में हो तब तक आप सब शिष्य हो, उसमे ना कोई पुरुष है, ना कोई महिला है, ना कोई बड़ा है, ना कोई छोटा है.
वह सब चीजों के कोई मायने नहीं हैं.
तो यहाँ जन्म किसका हो गया? शिष्य का. बाहर निकलने के बाद तुम्हारे कोई और स्वरूप का जन्म हो जाएगा.
तुम्हारा रुप क्षण प्रतिक्षण बदलता है. रूप बदलते हैं, पर स्वरूप नहीं बदलता...
अस्ति, भाती, प्रीति, नाम, रुप. यह पांच लक्षण हैं जीव के…
अस्ति- होना
भाती- महसूस होना
प्रीति- प्रेम करना और पाना
नाम और रुप- दोनो इस संसार के हैं, वही बदलते रहते हैं.
नाम भी बदलता है, रुप भी बदलता है. अस्ति, भाती और प्रीति नही बदलते...
मैं हूँ, मैं जानता हूँ कि मैं हूँ, और मैं जानता हूँ कि मेरा स्वरूप प्रेम है. यह तीन नहीं बदलते - पर यह याद नहीं रहती क्योंकि हम नाम रूप में फँस जाते है.
नाम और रुप एक आवरण है, एक covering है- इसको जानते हुए अस्ति,भाती और प्रीति के साथ जुडे रहना सीखो. यही ज्ञान है...
और अज्ञान माने क्या? अस्ति, भाती और प्रीति को भूलते हुए नाम और रुप में फँस जाना.
स्वर्ग माने क्या? अस्ति,भाती और प्रीति में रहते हुए नाम और रूप के साथ खेलते रहना.
नरक माने क्या? अस्ति भाती और प्रीति को भूल के नाम और रुप में जीवन बिताना.
'मैं हूँ' - अस्ति.यह सत है
हमें पता है कि हम हैं- भाती- इसे चित कहते है.
और प्रीती- हम जान रहे हैं कि हमारा सच्चा स्वरूप प्रेम है- आनंद है...
अस्ति, भाती और प्रीति- सत, चित और आनंद- सच्चिदानंद...
हम अपने इस स्वरूप को भूल जाते हैं जब नाम रूप में फँस जाते हैं...
क्या मैं नही हूँ- इसे ढूँढो...
जो इसे जान रहा है, जो नहीं बदल रहा है- उस के साथ हो जाओ...
यही मोक्ष का द्वार है...
1 comment:
do you know this restlessness about something,searching something but don`t know what exactly......
is there any solution?????
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