शिव
शिव आनंद और ज्ञान स्वरूप है।
सृष्टी केवल शक्ति नही है।
शक्ति ज्ञान का व्यक्त रुप है
जो अव्यक्त से
धर्म से प्रकट होती है।
यही शिव शक्ति का नृत्य है।
दोनो का लास्य
पुरुष और प्रकृति कि अभिव्यक्ति है…
Monday, 8 October 2007
Satya Kya Hai
सत्य क्या है
बाल्टी के साथ रस्सी बंधी है. कूएँ में डाली है. रस्सी काटोगे नहीं तो बाल्टी डूबेगी नहीं.
तुम्हारा ध्यान इसलिये अधूरा है क्योंकि तुम संसार को पीछे छोड़ते नहीं...
ध्यान के बाद कि planning करके ही बैठते हो. सारे commitments zero करके बैठते ही नही.
चेतना में कोई ना कोई बीज पड़े रहते हैं.
कहाँ कहाँ रस्सी बाँध रखी है.
ज्ञान से वासनाओं के बीज जल जायेंगे.
किसी चीज़ के बारे में जानना और किसी चीज़ को जानना अलग है.
बिना शब्दों के ‘मैं कौन हूँ’ इसको जानो और फिर बिना शब्दों के संसार देखो.
मैं कहाँ कहाँ फंसा है.
ध्यान में सजगता नहीं है.
अभी विवेक ही नहीं जागा. पहले रस्सी को काटना है कि ‘यह सब सच है’.
शब्द और मतलब को छोडो. जो इसको जान रहा है, उसकी ओर ध्यान दो…
बाल्टी के साथ रस्सी बंधी है. कूएँ में डाली है. रस्सी काटोगे नहीं तो बाल्टी डूबेगी नहीं.
तुम्हारा ध्यान इसलिये अधूरा है क्योंकि तुम संसार को पीछे छोड़ते नहीं...
ध्यान के बाद कि planning करके ही बैठते हो. सारे commitments zero करके बैठते ही नही.
चेतना में कोई ना कोई बीज पड़े रहते हैं.
कहाँ कहाँ रस्सी बाँध रखी है.
ज्ञान से वासनाओं के बीज जल जायेंगे.
किसी चीज़ के बारे में जानना और किसी चीज़ को जानना अलग है.
बिना शब्दों के ‘मैं कौन हूँ’ इसको जानो और फिर बिना शब्दों के संसार देखो.
मैं कहाँ कहाँ फंसा है.
ध्यान में सजगता नहीं है.
अभी विवेक ही नहीं जागा. पहले रस्सी को काटना है कि ‘यह सब सच है’.
शब्द और मतलब को छोडो. जो इसको जान रहा है, उसकी ओर ध्यान दो…
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