Tuesday, 19 May 2009
एक अनोखी भेंटवार्ता- ३
व्यक्ति आगे बोला, 'भारत में हिंदू धर्म पर हज़ारों साल से विदेशी साम्राज्यों के आक्रमण होते रहे हैं. कितने ही धर्म और धार्मिक प्रथाओं को हिंदुओं ने अपने सनातन धर्म के विशाल आँचल में समेट लिया. हिंदू धर्म तो जीवन जीने की शैली है, और आपको इसमें हर एक धर्म से मिलतीजुलती धार्मिक शिक्षाएं मिलेंगी.'
लड़की बोली, 'मुझे यह सब समझ तो नहीं आ रहा है, मगर यह हिन्दू धर्म बड़ा दिलचस्प लगता है।'
फिर कुछ सोच कर वह अचानक बोली, 'क्या आप धार्मिक हैं?'
'हम्म... यह कहना थोड़ा मुश्किल है। अगर आपके Christian धर्म के अनुरूप कहूं, तो हो सकता है मैं धार्मिक नहीं हूँ क्योंकि मैं कभी कभी मंदिर चला जाता हूँ, और इच्छानुसार पूजा पाठ करता हूँ- अथवा नहीं।'
लड़की बोली, 'हमारे रोमन कैथलिक (Roman Catholic) धर्म में हर रविवार चर्च जाकर, पादरी से बाईबल के कुछ उपदेश सुनना और कम्युनिअन (communion) ग्रहण करना अच्छा मानते हैं।'
व्यक्ति बोला, 'हम हिंदू चाहें तो मंदिर जाकर प्रार्थना कर सकते हैं। लेकिन अगर कोई हिंदू ज़िन्दगी में कभी भी मंदिर नहीं जाए, तो भी वे धार्मिक हो सकता हैं।'
लड़की को यह बात बड़ी अजीब लगी। उसके धर्म में तो हर चीज़ अक्षरशः विधित थी। उसको रह रह कर नन और पादरी की बातें याद आ रही थीं।
'अच्छा यह बताईये कि क्या आपके धर्म में हिंदू बनने की कोई प्रथा (Initiation Ritual to be formally ordained as a Hindu) है? जैसे हमारे क्रिश्चियन कैथलिक धर्म में बैप्टिज़म (Baptism) द्वारा हम अपने धर्म में शामिल किए जाते हैं.
व्यक्ति बोला, 'हिंदू धर्म में ऐसी कोई Initiation प्रथा नहीं है। ऐसी कोई भी रीती नहीं है जिसको पूर्ण करने पर कोई ऐसी घोषणा करे कि 'चलो! आज से तुम हिंदू धर्म के अनुयायी हुए!' हिंदू धर्म तो जीवन जीने की एक शैली है। कोई भी, किसी भी समय हिंदू धर्म अपना सकता है। इसके लिए उसे किसी कि आज्ञा या फिर कोई भी प्रथाओं से गुज़रने की कोई ज़रूरत नही!'
वह इसलिए क्योंकि हर व्यक्ति जन्म से हिंदू होता है। हाँ, व्यक्ति के अच्छे जीवन निर्वाह के लिए ऋषियों ने व्यक्ति के जीवन में कुछ संस्कार निर्धारित किए थे। जैसे कि मुंडन, कान छेदना, जनेऊ संस्कार, विवाह के रीति-रिवाज़ आदि। मगर इन्हे आजकल के हिंदू बहुत कम मानते हैं। लेकिन, उनको कोई माने या न माने, इससे उनके हिंदू होने पर कोई असर नहीं पड़ता है।
लड़की को यह बात भी बड़ी अजीब लग रही थी। भला कोई व्यक्ति बिना रीति रिवाज़ों के किसी धर्म में कैसे शामिल किया जा सकता है। जितना वह जानती थी, ऐसे व्यक्ति तो नास्तिक (Heathen) कहलाते हैं!
'क्या आपने कभी कोई और धर्म अपनाने के बारे में सोचा है?'
'क्यों भला?!' व्यक्ति हंसकर बोला। 'हिंदूओं को अपने धर्म के हर पहलू का विरोध करते हुए, उसे जैसा चाहें वैसे बदल कर, अपने अनुरूप धर्म को मानने की पूरी पूरी छूट है। कोई भी सच्चा हिंदू धर्म परिवर्तन में विश्वास नहीं करता। हर हिंदू को धर्म और प्रथाओं को मानने अथवा प्रश्न करने कि पूरी छूट है। मैं इच्छा से हिंदू हूँ, कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती से नहीं।'
'हर हिंदू अपने विश्वास को पूजा, सेवा या साधना, या फिर तीनों करके गहरा कर सकता हैं। सबसे बड़ी बात यहाँ रूचि की है। जिस व्यक्ति को जो भी पसंद हो वह उसी प्रकार से अपना धर्म जी सकता है। जब मैं छोटा था तब मुझे पूजा-पाठ में रूचि थी, मगर अब मैं अपने भगवान के प्रेम में इतना डूब गया हूँ कि, कर्म-काण्ड (Ritualistic worship) से बहुत दूर हो गया हूँ। अब मैं...'
'एक मिनट!' लड़की ने उसकी बात काटते हुए कहा, 'क्या आप अपने भगवान से डरते नहीं हो?!'
'भगवान तो मित्र होते हैं!' व्यक्ति बोला। 'भगवान तो हमारे सबसे आत्मीय प्रेमी और घनिष्ठ दोस्त होते हैं। माता, पिता या फिर किसी भी सांसारिक दोस्त से हज़ारों गुना अधिक प्रिय!'
'नहीं। मैं अपने भगवान से बिलकुल नहीं डरता। हिंदू धर्म में ऐसी कहीं कोई बात नहीं है।'
'हाँ। बुरे कर्म करने पर बुरे फल मिलते हैं और अच्छे कर्मों का नतीजा अच्छा ही होता है। उसमे भगवान का कोई भी हाथ नहीं है। जैसा करोगे वैसा भोगोगे- यह हिंदू धर्म की मान्यता है। इसे पाश्चात्य जगत के लोग 'Karma Theory' कहते हैं'।
लड़की अपनी सीट पर थोड़ा ठिठककर बैठ गयी। उसकी उत्सुकता साफ़ दिखाई दे रही थी।
'यह Karma शब्द तो मैंने सुना है! मगर इसके बारे में मुझे कुछ पता नहीं है। क्या है यह 'Karma Theory'?'
(क्रमशः)
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