Wednesday, 20 May 2009

एक अनोखी भेंटवार्ता- ४

एक अनोखी भेंटवार्ता- ४

सफ़र के करीब दो घंटे बीत चुके थे और व्यक्ति को लगा कि यह वार्ता लम्बी चलेगी. वह मन ही मन मुस्कुरा रहा था. उसे यह समझ आ गया था कि लड़की की पूछताछ और जिज्ञासा उसके धर्म को हिंदू धर्म से ऊंचा साबित करने के लिए नहीं थी. लड़की में ख़ुद को जानने कि प्रबल इच्छा मालूम हो रही थी.
व्यक्ति जानता था कि धर्म और दुनियादारी की बातें बेकार के तर्कों को बढ़ावा देती हैं और किसी के कोई काम की नहीं होतीं. लड़की का प्रश्न ऐसा था जिसका जवाब इस वार्तालाप को एक नयी दिशा दे सकता था- जो बातचीत को धार्मिक बातों से परे, आध्यात्मिक बातों की ओर ले जा सकता था और लड़की को अपनेआप को जानने में मदद कर सकता था.
वह बोला, 'कर्म का सीधा सीधा मतलब होता है कोई भी कार्य (Action). जब हम कुछ भी काम करते हैं तो उसका असर (Effect) होता है. इसे हम कर्म और कर्मफल (Karma/Cause/Action and Fruit of Karma/Effect/Reaction) कह सकते हैं. यह कोई धार्मिक बात नहीं है बल्कि सरल सत्य है जो हमें रोज़ अपनी ज़िन्दगी में दिखता है.
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ. किसी बागीचे में हम बीज बोते हैं, उन्हें पानी से सींचते हैं, तो पौधे उगते हैं. मगर हर बीज से वही पौधा उगेगा जिसका बीज बोया गया हो. अगर आपने आम का पेड़ लगाया है तो उसमे संतरे तो नहीं उगेंगे, है कि नहीं?!'
'जी बिलकुल' लड़की बोली.
व्यक्ति आगे बोला, 'ठीक इसी प्रकार हमारे हर कर्मों (Actions) को बीज माना जा सकता है, और उनके असर (Effects) को कर्मफल (Fruits of Karma) माना जा सकता है.'
लड़की व्यक्ति की बात ध्यान से सुन रही थी.
व्यक्ति ने आगे कहा, 'मगर इसका एक और पहलू है. जैसे अलग अलग पौधों के बीज अगर एक समय पर भी बोए जाएँ, और पानी से सींचें जाएँ, फिर भी सब अपने अपने समय से ही बड़े होते हैं और अलग अलग समय पर फलते फूलते हैं; उसी प्रकार हमारे कर्म भी अलग अलग समय पर फलते हैं.'
'वो कैसे?'
'कर्मफल तीन प्रकार के होते हैं- पहले, ऐसे कर्म जिनका असर एकदम होता है- जैसे अगर आप अपना हाथ आग में डालोगे तो एकदम गर्मी लगेगी और जल जाएगा. दूसरे, वैसे कर्म जिनका असर कुछ समय के बाद होता है, जैसे अगर आपने थोड़ा बासी खाना खा लिया हो तो कुछ समय बाद पेट में दर्द होगा. और तीसरे, वह कर्म जिनका असर बहुत समय के बाद होता है- जैसे किसी इंसान ने किसी एच आई वी+ (HIV+) व्यक्ति के साथ यौन सम्बंध बनाए और बहुत साल बाद एड्स (AIDS) का शिकार हो गया.
हमारे जीवन में बहुत सी परिस्थितियाँ आती हैं जिन्हें हम समझ नहीं पाते, और भगवान को या परिस्थितियों को दोष देते हैं. लेकिन अगर हम Karma Theory कोसमझ लें तो अधिकतर प्रश्नों का बड़ी आसानी से निवारण हो जाता है.'
लड़की सोच में पड़ गयी थी. वह व्यक्ति की बातों से प्रभावित हो रही थी. वह इन बातों के द्वारा अपने जीवन की घटनाओं को समझने की कोशिश कर रही थी.
'मगर क्या आपकी Karma Theory मुझे यह बता सकती है कि कोई अमीर और कोई ग़रीब, कोई स्वस्थ और कोई बीमार क्यों पैदा होते हैं? किसी बच्चे को माँ-बाप का गहरा प्रेम और किसीको अपने माँ-बाप का प्यार क्यों नहीं मिलता?' बोलते बोलते, लड़की की आँखें भर आईं और उसकी आवाज़ कांपने लगी.
व्यक्ति समझ गया कि उसने लड़की की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. कुछ देर तक उसने कुछ नहीं कहा. फिर वह धीरे से बोला, 'हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि हम केवल एक ही शरीर में जीवन को पूरी तरह नहीं समझ सकते, इसलिए, हमें कई बार जन्म लेना पड़ता है. आत्मा शरीर बदलती रहती है और अमर है. वही कर्म और कर्मफल भोगती है. कुछ कर्मों का भोग हमें अपने अगले जन्मों में करना पड़ेगा- और कुछ ऐसे कर्म जो हमने पिछले जन्मों में किये होंगे, उनका भोग हमें इस जन्म में करना पड़ रहा है.
अगर आपके जीवन में कोई ऐसी शारीरिक या मानसिक पीड़ा आई हो, जिसका कोई कारण आप नहीं समझ पा रहीं हैं, तो हिंदू धर्म के अनुसार, वह किसी पिछले जन्म के कर्म का फल है. लेकिन साथ ही साथ यह भी जानना उचित है कि पीड़ादायक कर्म फल किसी पाप (Sin) के कारण नहीं हैं और भगवान किसी को दंड (punishment) नहीं दे रहे.
हिंदू मान्यता के अनुसार, स्वर्ग-नर्क (Heaven and Hell) भोग केवल अपने कर्म के अच्छे और बुरे फल ही हैं, और कुछ भी नहीं.'
लड़की ने कुछ सोच कर कहा, 'इसका मतलब आप हिंदू तो भगवन में कोई विश्वास ही नहीं करते! जब सब कुछ अपने ही हाथ में है- तो भगवान कि ज़रुरत ही नहीं जान पड़ती है!'
व्यक्ति बोला, 'ऐसा नहीं है, भगवान तो श्रद्धा की बात है. इसीलिए हिंदू धर्म में इश्वर को सगुण साकार 'एवं' निर्गुण निराकार दोनों ही कहा गया है.'
'तो आपका कहना है की मेरे जीवन में जो कुछ हुआ है और हो रहा है, उसका कारण मेरे ही कर्म हैं? और ईश्वर का उसमे कोई हाथ नहीं? इसका मतलब तो यह हुआ की ईश्वर से अपने पापों के लिए माफी मांगने से (Asking for forgiveness for one's sins) आपके पाप कभी नहीं धुलेंगे!
हमारा धर्म तो कहता है की जीज़स हमारे पापों के लिए सूली चढ़े थे. और अगर हम कोई भी गलत काम करते हैं, और हमें उसके लिए पश्चात्ताप होता है, तो हम उनसे माफ़ी मांग कर मुक्त हो सकते हैं. इसका मतलब तो यही हुआ कि आपके हिंदू धर्म में मुक्त होने का कोई रास्ता ही नहीं है!'
व्यक्ति मुस्कुराकर सर हिलाने लगा और कुछ देर के लिए चुप हो गया. यही बात उसने कितने ही पाश्चात्य धर्म के अनुयायियों के मुख से सुनी थी. इसी बात को लेकर वे सब हिंदू धर्म का विरोध करते हैं.
'हिंदू धर्म में इश्वर मनुष्य कि पूरी पूरी देखभाल करते हैं। मनुष्य अगर अपने पापों का प्रायश्चित्त करे तो भगवान उस पर मेहर (Grace) बरसा देते हैं.
मगर, जैसे अगर कोई बच्चे ने अगर गलती कि हो और माफ़ी मांग ले, तो उसकी गलती कम नहीं हो जाती. उसे गलती का एहसास होने के लिए दंड भोगना ज़रूरी होता है. उसी प्रकार, हमें अपने कर्मों के फल भोगने ही पड़ते हैं. बारिश में कोई भीग रहा हो, और भगवान से बचाव कि प्रार्थना करे, तो भगवान उसे मेहर और ज्ञान की छतरी दे देंगे, मगर बरसात को रोकेंगे नहीं!
वैसे ही कर्म फल की 'बरसात' से बचने के लिए, ज्ञान और साधना कि 'छतरी' का सहारा लेना चाहिए. माफ़ी मांगने (Praying for Forgiveness) से अंहकार (Ego) और ग्लानि (Guilt) कम होती है.
लड़की बोली, 'मगर आप एक ही ईश्वर पर क्यों विश्वास नहीं करते?
(क्रमशः)

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