सत्य क्या है
बाल्टी के साथ रस्सी बंधी है. कूएँ में डाली है. रस्सी काटोगे नहीं तो बाल्टी डूबेगी नहीं.
तुम्हारा ध्यान इसलिये अधूरा है क्योंकि तुम संसार को पीछे छोड़ते नहीं...
ध्यान के बाद कि planning करके ही बैठते हो. सारे commitments zero करके बैठते ही नही.
चेतना में कोई ना कोई बीज पड़े रहते हैं.
कहाँ कहाँ रस्सी बाँध रखी है.
ज्ञान से वासनाओं के बीज जल जायेंगे.
किसी चीज़ के बारे में जानना और किसी चीज़ को जानना अलग है.
बिना शब्दों के ‘मैं कौन हूँ’ इसको जानो और फिर बिना शब्दों के संसार देखो.
मैं कहाँ कहाँ फंसा है.
ध्यान में सजगता नहीं है.
अभी विवेक ही नहीं जागा. पहले रस्सी को काटना है कि ‘यह सब सच है’.
शब्द और मतलब को छोडो. जो इसको जान रहा है, उसकी ओर ध्यान दो…
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