ध्यान में नकारात्मक विचार
एक घड़े के अन्दर जब आप पानी भरते हैं, तब उसकी गर्दन गीली हो जाती है, और जब आप पानी निकालते हो, तब भी गर्दन गीली होगी. वैसे ही जब आप ध्यान में बैठते हो तब अन्दर से कुछ नकारात्मक विचार बहार आते हैं.
ध्यान साधना में शुरू शुरू में बहुत हलचल और पीड़ा होती है. जब मन के नकारात्मक विचार बाहर आ रहे होते हैं, तब चिड होती है, डर लगता है, गुस्सा आता है.
ध्यान करते समय, जो भी negativity आ रही हो वह बाहर जा रही होती है. उस समय उसे ख़ुशी ख़ुशी आने दो, दबाओ मत. उसको आमंत्रण दो, स्वीकृति दो, क्योंकि वह विचार तब ही बाहर जाएंगे.
समुद्र मंथन में सबसे पहले हालाहल निकलता है. हालाहल विष है, हमारे भीतर के हलचल और तनाव हैं.
शिव माने सजग ज्ञानी, जो इस विषैले पदार्थ को पी लेते हैं, मगर कंठ में ही रोक लेते हैं.
नकारात्मक विचारों को तुम ध्यान में एक दृष्टा भाव में रहते हुए देखते रहो, और उनमे उलझो मत. यही शिव के हालाहल को पीने का तात्पर्य है.
कुछ समय बाद तुम आप खाली हो जाओगे.
सब्र का फल मीठा होता है…
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