Thursday, 25 October 2007

Teen Maalii

तीन माली


एक बहुत अच्छा राजा था. उस राजा के पास एक बहुत सुन्दर और बहुत बड़ा बागीचा था. उस बागीचे का एक कोना जंगल के साथ लगा हुआ था.

राजा और रानी बागीचे मैं घूमा करते थे. तीन माली उनके बागीचे की देखभाल करते थे.

एक दिन, राजा रानी बागीचे में टहल रहे थे. राजा रानी बात करते हुए मस्ती में घूम रहे थे. अचानक राजा का महामंत्री दौड़ा, दौड़ा आया, उसे राजा को कोई बहुत ज़रूरी बात बतानी थी. उनकी बात कुछ लंबी होने लगी, तो राजा ने रानी से कहा ‘तुम अगर चाहो तो थोड़ा आगे चली जाओ, मैं इनसे बात कर लेता हूँ, फिर मैं तुम्हारे साथ हो लूंगा.’

रानी बोली ‘ठीक है आप जैसा कहें.’ रानी टहलती हुई दूर निकल गयी और बागीचे के आख़िर तक पहुंच गयी.

तीनों माली जंगल के पास ही काम कर रहे थे. अचानक, जब रानी वहाँ पहुँची, एक बहुत बड़ा शेर दहाड़ता हुआ, रानी की ओर झपटा. तब तीनों माली दौड़कर आये और शोर मचाने लगे. उन्होंने डंडे लेकर उस शेर को डराया तो वह भाग गया.

रानी मालियों की वजह से बच गयी. वह काफ़ी डरी हुई थी. वह तीनों मालियों को साथ लेकर वापस पहुँची और राजा को सब कुछ बताया.

राजा मालियों से बोले, ‘बहुत अच्छा काम किया आप तीनों ने. मैं आपका आभारी हूँ. मंत्रीजी, इन्हें मुंहमांगा इनाम दीजिये’

मंत्री ने उनसे पूछा, तो एक माली मुस्कुराता हुआ बोला, ‘रहने दीजिये, हमने तो अपना कर्तव्य निभाया.’

राजा बोले ‘फिर भी, कुछ तो बोलो क्या चाहिए? हम तुम्हारी हर इच्छा पूरी करेंगे.’

माली बोला, ‘राजाजी, अगर आप देना ही चाहते हो, तो मुझे एक ही चीज़ चाहिए- मैं एक दिन के लिए इस देश का राजा बनना चाहता हूँ.’

हँसते हुए राजा बोले, ‘बस इतनी सी बात? ठीक है, एक दिन के लिए तुम इस देश का कार्यभार संभाल लेना.’

दूसरे माली ने इनकी बातें सुन ली थीं. जब उस से पूछा गया, तो उसने बोला, ‘राजाजी, मुझ को भी एक दिन का राजा बनना है.’ राजा बोले ‘ठीक है.’

तीसरा भी पीछे क्यों रहता. उसने भी वही बोला, ‘मैं भी एक दिन के लिए राजा बनना चाहता हूँ.’

राजा हंसकर बोले ‘भाई ठीक है, तीनों को एक, एक दिन के लिए राजा बना देते हैं, और हम घूमने चले जाते हैं.’

सबको बता दिया गया कि राजा ने आज्ञा दी है कि यह तीनों माली एक एक दिन के लिए राजा बनेंगे और सबको इनका कहा मानना पड़ेगा। राजा ने मंत्री को आज्ञा दी की जब हर माली का राजकार्य समाप्त हो तो उनको कोई धन देकर घर भेजा जाये।

पहले दिन पहला माली आया, मंत्री उसको बोले, ‘आप महाराज हैं, आज आपका दिन है, आप जो चाहे कर सकते हैं.’ उस माली ने कहा, ‘मुझे राजगुरुजी के पास ले चलिए.’

वह राजगुरु को प्रणाम करके, बोला ‘गुरुजी, ये दिन मुझे मिला है, आप बताइये मुझे क्या करना चाहिए?’ राजगुरु थोड़ी देर सोचकर बोले, ‘गरीबों को कुछ दान दे दो, अच्छा रहेगा.’

तो पहला माली बोला, 'महामंत्रीजी सब गरीबों को जैसा आप ठीक समझते हैं, धन सम्पत्ति का दान दीजिये. मैं यहीं रहूँगा.'

फिर वह गुरुजी को बोला ‘गुरुजी, मैं आपके पास दिन काटने के लिए जीवन भर तरसता रहा. मुझे यह मौका मिला, तो आपसे मिलने का रास्ता मिल गया. आज सारे दिन मैं आप के समीप बैठकर ज्ञान पाना चाहता हूँ.’

गुरु उसको ज्ञान और धर्म की बातें बताने लगे. शाम को महामंत्री वापस आए और इस माली को कहा, ‘आज का राज काज अच्छे से गुज़र गया है. अब आपका कार्य समाप्त हुआ.'

गुरु ने कहा, ‘लेकिन मेरा कार्य अभी बाक़ी है. बेटा तुम में लगन है. तुम आज से मेरे शिष्य हुए. जो तुमने राजा बनकर पाया है, वह तुम अब साधारण माली होकर भी पाओगे. तुम जब चाहो यहाँ बिना रोक टोक आ जा सकते हो.’

मंत्री ने राजा की आज्ञानुसार पहले माली को कुछ धन देना चाहा, तो उसने इनकार किया, ‘मुझे तो मेरा धन मिल गया है. इस धन को भी गरीबों में बाँट दीजिये.’ और पहला माली ख़ुशी ख़ुशी अपने घर चला गया.

अगला दिन हुआ, अगला माली आया, मंत्री बोले, ‘आज आप राजा हैं, तो आप बताइये आप क्या करना चाहेंगे?’ उसने पूछा, ‘कल क्या हुआ?’ मंत्री बोले, ‘कल हम लोगों ने गरीबों में धन बांटा.’

दूसरा माली बोला, ‘अच्छा है. वही चलने दीजिये, हम खुद जाएंगे और सब को धन बाँटेंगे.’ वह एक बार गुरुजी को प्रणाम करके आ गया और वह खुद उस दान कार्य में जुड़ गया. वह मंत्री से हर कार्य से पहले उसके बारे में जानकारी लेकर अपनी सलाह देता - ‘नहीं उनको ये वस्तु दो, ऐसे दो, ये क्यों दे रहे हो?’

वह मंत्री से सब राजपाठ कि बातें करने लगा, और उसने कुछ अच्छे सुझाव भी दिए. उसने बढ़िया भोजन खाया, अपने सारे दोस्तों के साथ मौज मस्ती की. दरबार मैं बैठकर फरियादें सुनीं, सबके साथ खूब बातचीत की, और शाम को जब उसका दिन ख़त्म हुआ, तो मंत्री ने उसे कुछ धन दिया, और राजनीति सीखने का आमंत्रण भी दिया. और दूसरा माली भी ख़ुशी ख़ुशी अपने घर चला गया।

तीसरा दिन हुआ. तीसरा माली आया. फिर मंत्री बोले, ‘आज आप राजा हैं, तो आप बताइये आप क्या चाहते हैं?’ तीसरा माली थोड़ा चतुर था. बोला, ‘हम आज राजा हैं, हमारी रानियाँ कहाँ हैं?’

मंत्री बोले, ‘पटरानी तो राजाजी के साथ गयी हैं, लेकिन राजा की तीन और रानियाँ हैं.’ तीसरा माली बोला, ‘अच्छा है. हम आज रानियों के साथ रहेंगे.’

अब मंत्री तो मंत्री होते हैं. उसने भी सोचा कि कैसे यह दिन बिना रोक टोक निकल जाये.

मंत्री ने कहा, ‘जैसी आप कि आज्ञा राजाजी. आप राजा हैं, आप जो चाहे कर सकते हैं.

लेकिन आप माली का काम करते हैं इसलिए आपका शरीर थोड़ा कड़ा है. रानियाँ बहुत कोमल हैं, वह तो महलों में बड़ी हुई हैं, वह आपके साथ अभी इस स्थिती मैं नहीं रह पायेंगी.

ऐसा करते हैं, पहले मैं आपको चंदन का लेप लगवाकर गुलाबजल से नहलवा देता हूँ, मालिश करवा देता हूँ, आपकी दाढ़ी बनवा देता हूँ, बाल कटवा देता हूँ, manicure, pedicure करवा देता हूँ, foot massage, head massage, सब कुछ करवा देता हूँ.

और तब तक मैं रानियों को भी आपके लिए तैयार करवा देता हूँ. कमरे में फूल सजवा देता हूँ. उसके बाद आप बढ़िया पोशाक पहनकर रानियों के पास चलियेगा.’

तीसरा माली बोला, ‘अरे वाह! बहुत बढ़िया plan बनाया है आपने मंत्रीजी.’

फिर क्या था, चंपी वाला, मालिश वाला, accupressure वाला, नाई- सब झट बुला लिए गए. मंत्री ने सबको आज्ञा दी, ‘इन महाशय की ऎसी बढ़िया तरह से मालिश करना कि इनको गहरी नींद आ जाये. और सब कुछ आपको बहुत धीरे धीरे करना है. एक के बाद एक जाना. यह नहीं कि सारे एक साथ उनके पास चले जाओ.’

माली तो रोज़ भारी काम करते हैं- कभी इस माली को ऐसी बढ़िया मालिश जिंदगी में नहीं मिली थी. साथ ही साथ उसे भरपेट मिठाइयां, पकवान और नींद की गोली मिलाकर शरबत भी दे दिया गया. और वह ऐसा सोया कि फिर देर रात तक सोता ही रहा. ८-१० घंटे बीत गए…

राजा रात को वापस आये, और मंत्री ने राजा को सब कुछ बताया.

राजा बोले, ‘देखिए मंत्रीजी, राजा का कर्तव्य है प्रजा की भलाई. इस व्यक्ति को सही रास्ता दिखलाना भी हमारा ही कार्य है. इसको दंड नहीं देना, क्यों कि इसने जो भी चाहा हो, वह उसके हक में था, और आपने बड़ी सूझ बूझ से काम किया कि कुछ ग़लत नही हुआ.

किसी के मन में ग़लत विचार आने से हम उसे दंड नहीं दे सकते हैं. इसको धन देकर, इसके घर भेज देना,मगर पहले इसे कुछ हिदायतें दे देना.

रानीजी को बचाते समय, इसने वीर होने का सबूत दिया था. इसको हम सैनिक बना सकते हैं. बस इसकी वासनाओं की शुद्धि के लिए इसे एक सही शिक्षक चाहिए. राजगुरुजी से पूछकर इसको सही ज्ञान दिलवाइये, और बाद में सेनापति के पास भिजवा दीजिये.’

तीसरा माली देर रात को जब जागा, तो बहुत भयभीत था, कि उसे उसकी बातों के लिए भयंकर दंड दिया जाएगा. मगर जब मंत्रीजी ने राजा का निर्णय बताया, तो वह कृतज्ञ हो गया. धन पाकर, और सेना में भर्ती की बात जानकर वह फूला नहीं समाया. और तीसरा माली भी ख़ुशी ख़ुशी अपने घर चला गया.

कुछ दिनों के बाद राजा ने पहले माली को राजगुरुजी की सेवा में रखवा दिया, दूसरे को मंत्री के साथ राजनीती सीखने और उनका हाथ बंटाने में लगवा दिया, और तीसरे को अपनी सेना में सैनिक बना दिया.

समझने की बात यह है कि तीनों मालियों का वही प्रारब्ध था. लेकिन तीनों में अलग अलग भाव थे, जिनके कारण उन्होने अपने कर्मफल का अलग, अलग भोग किया. पहला माली सत्व गुण में, दूसरा माली राजस गुण में, और तीसरा तामस गुण में थे, और तीनों ने अपने गुणों के अनुरूप ही आगे के लिए नए कर्म बनाए.

हर व्यक्ति के गुण और परिस्थितियाँ जान कर अगर हम उनसे काम लेना सीख लें, तो जीवन में बहुत से कार्य आसान हो जाएंगे…

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