कर्म के सूक्ष्म फल
कर्म का एक बाहरी असर होता है, एक भीतरी असर होता है.
कर्म का जो असर संसार में होता है, हम उसे ही जानते हैं.
लेकिन बाहरी असर बहुत कम है- समझो १%. कर्म का ९९% असर भीतर, हमारी चेतना पर होता है.
थोड़े दिनों तक कोई कर्म बार बार करने से वह हमारा स्वभाव हो जाता है. हमारी चेतना पर इसका असर हो जाता है.
जैसे तुम्हे सफाई रखना पसंद है- यह संस्कार तुम्हारे अन्दर सालों से बैठ गया है, तो तुम जहाँ जाओगे वहीं सफाई रखोगे.
जब तुम कोई कर्म करते हो, उसका असर मन पर, विचारों पर पड़ता है- इस से संस्कार बनते हैं.
हम लोग बाहरी असर की ही चिंता करते हैं, “यह क्या हुआ? कैसे हुआ?”
तुम यह नहीं जानते, कि तुम्हारी चेतना पर उसका कितना गहरा असर होता है. तुम्हारे सारे भाव वहाँ से उठते हैं, तुम्हारे सारे विचार उसमे से प्रकट होते हैं, तुम्हारे सारे कर्म वहाँ बनते हैं.
जो भी कर्म करो, उसका संसार में प्रकट कर्म फल तो भोगना ही पड़ेगा, लेकिन चेतना पर जो उसका असर होगा, उस पर तुम्हे बहुत ध्यान देना पडेगा.
सेवा में लग जाओ. साधना करो. सत्संग में बैठो.
सेवा से तुम्हारे विचारों और भावों कि शुद्धि होगी. साधना करोगे, तो संस्कार शुद्ध होंगे, वासनायें क्षय होंगी, चेतना निर्मल होगी. सत्संग में ज्ञान जागेगा कि पीड़ादायक कर्म नहीं बनाते हुए कैसे जीवन व्यापन करें. प्रारब्ध कर्म फल भोगने की शक्ति आएगी.
No comments:
Post a Comment